आरिफ की याद, सोनाली को सम्मान, BBS में हिन्दी दिवस मनाना सुखद!
सुनो कहानी शानदार शुरुआत, बस-कहने-सुनने की अदब बनी रहे
RNE Special
अपनी शायरी के लिए ताउम्र जिम्मेवार रहने वाले शायर बहुत कम होते हैं। जो होते हैं, उनको अदब की दुनिया में हमेशा याद रखा जाता है। ऐसे ही शायर अपनी, उर्दू अदब की और अपनी माटी की पहचान बनाते हैं। इसी भावभूमि के शायरों में नाम आता है मरहूम शायर जनाब मोहम्मद उस्मान आरिफ का। बीकानेर का ये शायर यहां की अदब की दुनिया का बड़ा नाम था जिसने फलक से पार जाकर अपनी शायरी का डंका बजाया।
लोग उन्हें यूपी के राज्यपाल, केंद्रीय मंत्री या सांसद के रूप में ज्यादा जानते हैं, जो उनकी असली पहचान नहीं है। वो तो मन से, कर्म से, वचन से शायर थे। शायर कहलाना ही वे ज्यादा पसंद करते थे। बीकानेर की गंगा जमुनी तहजीब का ये शायर राजनीति में गया तो वहां भी अपनी इस तहजीब के कारण उसने खूब मान पाया। ओहदे पर ओहदे मिलते गये, क्योंकि वो सद्भाव की जिंदा मिसाल थे। ये सद्भाव उनको बीकानेर की माटी से मिला था और उसकी खुशबू ही उन्होंने ताउम्र पूरे देश में बिखेरी। अपनी खास तहजीब, सलीके के कारण वो देश की सत्ता के करीब रहे। वो भी आज के नेताओं की तरह चापलूसी करके नहीं, अपने ईमानदार वजूद के कारण। उनकी कद्र उस समय का हर छोटा बड़ा नेता करता था, क्योंकि वो दिल से शायर थे। अपनी बात से कभी पलटते नहीं थे।
जब देश में आपातकाल के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ तो कई बड़े नेता इंदिरा गांधी का साथ छोड़कर निकल लिए, मगर आरिफ साब उस समय भी साथ मे अडिग रहे। ये व्यक्ति निष्ठा नहीं थी, विचार के प्रति निष्ठा थी। विचार के कारण वो अपनी जगह टिके रहे, पाला नहीं बदला। खूब प्रलोभन भी मिले, पर इस शायर ने उनको बेदर्दी से ठुकरा दिया। ये मिसाल कम ही देखने को आजकल मिलती है।
अदब की दुनिया का भी उनका एक वाकिया है। बीकानेर के एक कवि ने राज जाने के बाद इंदिरा गांधी की चुप्पी पर व्यंग्य की एक कविता मंचों से खूब पढ़ी। आरिफ साहब ने भी उसको सुना। बोले नहीं, हरेक कवि की अपनी अभिव्यक्ति है। मगर समय ने पलटा खाया। इंदिरा गांधी फिर राज में आ गई। आनन्द निकेतन के एक आयोजन में उसी कवि ने उनकी प्रशंसा में कविता सुनानी शुरू कर दी। श्रोताओं में बैठे आरिफ साहब खड़े हो गये। गुस्से में बोले, या तो आप आज गलत है या पहले गलत थे। कुल मिलाकर आप गलत तो है। वे बोले, हर कवि को याद रखना चाहिए कि उसने पहले क्या कहा था, जो बारबार अपने को बदले वो कवि नहीं। सन्नाटा छा गया। इस तरह साफगोई से कहने का माद्दा तो बीकानेर में उनके अलावा किसी में नहीं देखा।
उन्हीं मरहूम शायर जनाब मोहम्मद उस्मान आरिफ के शायर के व्यक्तित्त्व व कृतित्त्व पर अजीत फाउंडेशन ने पिछले सप्ताह तीन दिन का आयोजन किया। ये अपने आप में ऐतिहासिक कार्य था। उनकी शायरी पर बात हुई, उनके व्यक्तित्त्व पर कई नए पहलू उजागर हुए। इस युग की पीढ़ी को उन्हें जानने और समझने का अवसर मिला। जिसके लिए अजीत फाउंडेशन साधुवाद का पात्र है। वही समाज जिंदा समझा जाता है जो अपने आगे की पीढ़ी के कामों को दोहराता रहे, याद करता रहे, उससे सीख लेता रहे।
भीलवाड़ा में नाट्य महोत्सव:
नाट्य गुरु, कवि, आलोचक, पंचम वेद की सरल हिंदी भाषा में टीका करने वाले नाटककार डॉ अर्जुन देव चारण के सम्मान में इस बार भीलवाड़ा नाट्य महोत्सव 2025 का आयोजन हुआ। 9 से 13 जनवरी तक के इस आयोजन में राजस्थानी व हिंदी के कुल 11 नाटकों का मंचन हुआ। जिसमें डॉ चारण लिखित ‘ गवाड़ी ‘ नाटक भी मंचित हुआ। जिसका निर्देशन आशीष चारण ने किया। इस समारोह में बीकानेर के भी 2 नाटकों का मंचन हुआ।
एक नाट्य गुरु को ये बहुत बड़ा सम्मान है। राजस्थानी नाटक को समर्पित डॉ चारण ने पूरे देश में अपनी खास पहचान बनाई है। वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के कार्यवाहक अध्यक्ष भी रहे हैं। संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के भी वे अध्यक्ष रहे। ये सब उपलब्धियां उनके नाम उनके समर्पित राजस्थानी रंगकर्म के कारण है। भरतमुनि के नाट्य शास्त्र की 1000 साल पहले अभिनव गुप्त ने संस्कृत में टीका की थी। उसके बाद अब डॉ अर्जुन देव चारण ने सरल हिंदी भाषा में उसकी टीका की है। जिससे पूरे देश के रंगकर्म को लाभ हुआ है। ये हर रंगकर्मी के लिए एक धर्म ग्रंथ बना हुआ है। उनके सम्मान में नाट्य महोत्सव कर भीलवाड़ा के रंगकर्मी गोपाल आचार्य व उनकी टीम को बधाई दी जानी चाहिए। एक सच्चे रंगकर्मी का यही सम्मान वाजिब है। नाट्य महोत्सव के सभी नाट्य दलों को बधाई। सभी कलाकारों का साधुवाद। जय रंगकर्म।
सुनो कहानी में इस बार हरीश:
ऊर्जा थियेटर सोसायटी की तरफ से शुरू की गई नई पहल ‘ सुनो कहानी ‘ में इस बार हरीश बी शर्मा ने अपनी दो कहानियां सुनाई। एक राजस्थानी और एक हिंदी। इस आयोजन में अनिरुद्ध उमट, मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ आदि भी अपनी कहानियां सुना चुके हैं।
हरीश ने पहले राजस्थानी कहानी ‘ बाजोट ‘ सुनाई। ये कहानी वर्तमान नारी विमर्श की एक नए सोच से लिखी गई कहानी थी। राजस्थानी कहानी का ताजा और नया तेवर इस कहानी में था। इस तरह के विषय को उठाने का साहस बहुत कम कहानीकार करते हैं, हरीश को इसके लिए बधाई दी जानी चाहिए। राजस्थानी समाज की नारी भी अब महानगरीय सभ्यता से होड़ में पीछे नहीं, उसके भीतर के द्वंद को हरीश ने कहानीकार के रूप में सामने रखा। सभी को ये कहानी बहुत पसंद आई। हरीश ने दूसरी जो कहानी हिंदी में सुनाई वो थी ‘ लिफ्ट ‘। इस कहानी के केंद्र में भी आज की नारी थी तो रूढ़ हुआ पुरुष भी था। नारी के सोच में पुरुष सत्तात्मक समाज से आये परिवर्तन को सूक्तियों से हरीश ने करीने से उकेरा। ये कहानी पलक झपकते निकलती है और सुनने वाले के दिमाग में कई सवाल छोड़ जाती है। ये एक मुक्कमिल कहानी की पहचान है। इस अनूठे आयोजन के लिए रंगकर्मी अशोक जोशी व उनकी टीम को बधाई तो बनती है।
मगर दो सलाह भी है::
- सुनो कहानी आयोजन ने एक ऊंचाई को छू लिया है, अब इससे नीचे इसे लाने का कोई उपक्रम नहीं होना चाहिए। अगर होता है तो फिर गम्भीर श्रोता टूटेंगे और आयोजन की महत्ता खत्म हो जायेगी।
- जब कहानीकार कहानी का पाठ आरम्भ कर दे तो किसी भी सूरत में भीतर देर से आने वाले को प्रवेश न दिया जाये। एक कहानी के पूरा होने के बाद भले ही प्रवेश मिले पर कहानी पठन के बीच मे किसी भी तुर्रमखां को भी प्रवेश न दिया जाये।
बीबीएस में हिंदी दिवस आयोजन:
अंग्रेजी माध्यम की प्रतिष्ठित स्कूल बीकानेर बॉयज स्कूल ‘ बीबीएस ‘ ने इस बार 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस पर आयोजन किया, वो भी केवल रस्मी नहीं, गंभीर आयोजन। ये एक सुखद बात है। गंभीर आयोजन, अच्छे वक्ता और शालीन श्रोता। उसके साथ स्कूल के स्टाफ व फादर द्वय का आयोजन के लिए समर्पण, अद्वितीय था।
वैश्विक स्तर पर हिंदी व हिंदी साहित्य का सिंहावलोकन इस आयोजन में हुआ। डॉ उमाकांत गुप्त ने हिंदी के विस्तार व प्रसार की अनूठी जानकारियां श्रोताओं को दी। जानकर कईयों को आश्चर्य हुआ कि इतने देशों और इतने विश्विद्यालयों में अभी हिंदी पढ़ाई जा रही है। विदेश में रहकर हिंदी में लिखने वाले लेखकों के बारे में भी उन्होंने बताया। मधु आचार्य ने हिंदी साहित्य व पाश्चात्य भाषा के साहित्य के फर्क को सामने रखा। आख़िलानन्द जी ने हिंदी की महत्ता को रेखांकित किया। राजाराम स्वर्णकार ने कविता सुनाई। श्रोताओं की भी आयोजन में भागीदारी रही। सबसे बड़ी बात, आयोजन में आने वाले हर श्रोता का बीबीएस ने सम्मान किया। सार्थक आयोजन के लिए फादर द्वय, पूनम जी चौधरी, अवंतिका जी शर्मा को बधाई। हिंदी के आयोजन लगातार होने की बात फादर ने कही, जो स्वागत योग्य कदम है।
सोनाली का सुयश:
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली का इस बार का राजस्थानी का युवा पुरस्कार बीकानेर की लाडली कवयित्री, कथाकार, चित्रकार, ब्लॉगर सोनाली सुथार को उनकी काव्य कृति ‘ सुध सोधूं जग आँगणे ‘ पर भुवनेश्वर में मिला। सोनाली ने इस पुरस्कार से बीकानेर, राजस्थानी भाषा का मान बढ़ाया है। वो कुशल चित्रकार भी है और उनके इस संग्रह की कविताओं में जीवन के कई रंग दिखाती कविताएं संकलित है। गहरे दर्शन भाव की कविताएं बहुत प्रभावी है।
मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में
मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।